Saturday, April 11, 2015

गाँव का क्रीड़ा-स्थल/खेल का मैदान

समराना-ताल : गाँव का गौरवपूर्ण क्रीड़ा स्थल

वैसे तो इस विशाल मैदान को प्राचीन समय से “समराना-ताल” के नाम से जाना जाता है, लेकिन आज के बदलते दौर में कई लोग इसे “समर सिंह क्रीड़ा-स्थल” या “समर सिंह स्टेडियम” के रूप में भी पहचानते हैं। यह मैदान गाँव के दक्षिण-पश्चिमी छोर पर स्थित है, जहाँ चारों ओर हरियाली और खुले आसमान का सुंदर नज़ारा देखने को मिलता है। इसके ठीक विपरीत दिशा में, अर्थात दक्षिण-पूर्वी छोर पर गाँव का राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय स्थित है, जिससे इस क्षेत्र को एक शिक्षात्मक और खेलकूद का संगम कहा जा सकता है।

समराना-ताल का आकार भी काफ़ी प्रभावशाली है — इसकी लंबाई लगभग 400 मीटर और चौड़ाई लगभग 150 मीटर है। यह विशाल मैदान न केवल गाँव के युवाओं के लिए खेलकूद का प्रमुख केंद्र है, बल्कि यहाँ समय-समय पर क्रिकेट प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें आसपास के कई गाँवों की टीमें उत्साहपूर्वक भाग लेती हैं। प्रतियोगिता के दिनों में यहाँ का माहौल उल्लास, जोश और खेल-भावना से भर उठता है।

हर दिन की शाम के समय, जब सूरज ढलने को होता है और हल्की हवा बहने लगती है, तो गाँव के लड़के यहाँ वॉलीबॉल का मैच खेलते हुए दिखाई देते हैं। उनकी ऊर्जा और उत्साह पूरे मैदान में एक अलग ही रौनक भर देता है — ठीक वैसे ही जैसा कि इस तस्वीर में साफ़ दिखाई देता है।

वास्तव में, समराना-ताल केवल एक मैदान नहीं, बल्कि गाँव की खेल भावना, एकता और परंपरा का प्रतीक है। यह वह स्थान है जहाँ पीढ़ियाँ दर पीढ़ियाँ खेल के माध्यम से दोस्ती, टीमवर्क और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का संदेश देती रही हैं।

Thursday, April 9, 2015

गाँव कि पतली सड़क


गाँव की सड़क : यादों और अपनापन से जुड़ी डगर

गाँव की सड़क को देखते ही मन अनायास ही गाँव की ओर खिंचा चला जाता है। जैसे ही इस मार्ग की मिट्टी की खुशबू हवा में घुलती है, वैसा एहसास कहीं और नहीं मिलता। यह वही सड़क है जो सालासर से मोमासर के बीच गुजरती है — एक ऐसा रास्ता जो न केवल दो स्थानों को जोड़ता है, बल्कि गाँव के लोगों की भावनाओं और जीवन की कहानियों को भी आपस में पिरोता है।

यह तस्वीर मोमासर से सालासर की ओर जाते हुए गाँव के प्रवेश छोर की है। जैसे ही कोई इस रास्ते से होकर गाँव में प्रवेश करता है, उसे एक अलग ही शांति, अपनापन और परिचितपन का अहसास होता है — मानो गाँव की मिट्टी अपने लोगों को पहचान लेती हो।

इस सड़क के बाईं ओर प्राथमिक विद्यालय स्थित है, जहाँ से अनेक बच्चों ने अपनी शिक्षा यात्रा की शुरुआत की है। वहीं दाहिनी ओर गाँव का श्मशान घाट है — एक ऐसा स्थान जो जीवन की अंतिम सच्चाई की याद दिलाता है। यह दोनों ही स्थल जीवन के दो पहलुओं का प्रतीक हैं — शुरुआत और अंत, जो इसी सड़क से होकर एक-दूसरे से जुड़ते हैं।

यह गाँव की सड़क केवल रास्ता नहीं, बल्कि स्मृतियों की पगडंडी है — जिस पर बचपन की हँसी, खेतों की महक, और लोगों के कदमों की गूँज आज भी सुनाई देती है।

Friday, April 3, 2015

राजियासर माँ नाग्णेचा माता मंदिर

माँ नागणेचा माता मन्दिर : आस्था और श्रद्धा का प्रतीक

गाँव के पश्चिमी छोर पर स्थित माँ नाग्णेचा माता मन्दिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह गाँव की आस्था, परंपरा और संस्कारों का जीवंत प्रतीक भी है। इस मन्दिर का निर्माण स्वर्गीय ठाकुर साहब श्रीमान सेडू सिंह जी (पुत्र – ठाकुर थान सिंह जी) की पुण्य स्मृति में उनके सुपुत्र ठाकुर साहब श्रीमान रिछपाल सिंह जी राठौड़ द्वारा करवाया गया था। यह पावन कार्य 22 फरवरी 2014 को संपन्न हुआ, जो आज भी गाँव के इतिहास में एक स्मरणीय और भावनात्मक तिथि के रूप में याद किया जाता है।

माँ नाग्णेचा माता का यह मंदिर गाँववासियों के लिए श्रद्धा और विश्वास का केंद्र है। यहाँ प्रतिदिन भक्तजन आरती और पूजा-अर्चना के लिए आते हैं, और नवरात्रों के पावन दिनों में तो यहाँ का माहौल भक्ति और उल्लास से भर उठता है। मंदिर की शांत वातावरण, सुगंधित धूप और घंटियों की गूंज एक ऐसी आध्यात्मिक अनुभूति देती है जो मन को शांति और शक्ति दोनों प्रदान करती है।

यह स्थल न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह गाँव की सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक है — जहाँ हर व्यक्ति, हर परिवार माँ नाग्णेचा के चरणों में अपनी आस्था अर्पित करता है।

Monday, May 13, 2013

गाँव की तलैय

राजियासर की तलैया : प्रकृति और परंपरा का संगम

यह है राजियासर गाँव की प्राचीन तलैया, जो हर वर्ष बरसात के मौसम में लबालब भर जाती है और अपने सौंदर्य से पूरे क्षेत्र को हरियाली और शीतलता से भर देती है। गाँव के लोग इसे स्नेहपूर्वक “ढाब” के नाम से भी पुकारते हैं। यह केवल जलस्रोत नहीं, बल्कि गाँव की जीवनरेखा और सामूहिक यादों का प्रतीक है।

तलैया के किनारे एक कुंई (well) भी स्थित है, जिसका पानी अत्यंत मीठा और स्वच्छ माना जाता है। कहा जाता है कि इस कुंई के जल में तलैया के पवित्र जल का ही प्रभाव है, जो इसे और भी स्वादिष्ट बनाता है। बरसात के बाद जब ढाब पानी से भर जाता है, तो इसके आस-पास का वातावरण एकदम मनमोहक हो उठता है — जैसे धरती ने हरियाली की चादर ओढ़ ली हो।

सावन तीज के पावन पर्व पर गाँव की महिलाएँ और युवतियाँ सजे-धजे वस्त्रों में यहाँ आती हैं। वे पारंपरिक गीत गाती हैं, झूले झूलती हैं और प्रकृति के इस सौंदर्य के बीच हर्षोल्लास और श्रद्धा से उत्सव मनाती हैं। उनके गीतों की मधुर ध्वनि और हँसी की गूंज से यह पूरा स्थान जीवन से भर उठता है।

वास्तव में, यह तलैया केवल एक जलाशय नहीं — बल्कि गाँव की संस्कृति, स्नेह और उत्सवों की धड़कन है।

 

Monday, January 28, 2013

गाँव का नजारा

गाँव का नज़ारा : छत से दिखती अपनी मिट्टी की सुंदरता

यह मनमोहक दृश्य राजियासर गाँव का है, जिसे छत से खींची गई तस्वीर में कैद किया गया है। ऊपर से देखने पर गाँव का पूरा नज़ारा दिल को एक अलग ही सुकून देता है — चारों ओर फैली हरियाली, मिट्टी के घरों की कतारें, दूर तक फैले खेत और शांत वातावरण। सचमुच, जो भी इस दृश्य को देखता है, उसके मन में अपने गाँव की मिट्टी की महक बस जाती है।

राजियासर गाँव कुल पाँच भागों में विभाजित है —
(1) उत्तरादाबास (उत्तर में), (2) दिखनादाबास (दक्षिण में), (3) बिचलाबास (पूर्व में), (4) जाटों का बास या चक राजियासर (उत्तर-पूर्व में), और (5) विकास नगर (पश्चिम में)।

ऊँचाई से देखने पर ये पाँचों हिस्से एक साथ मिलकर गाँव की एक सुंदर तस्वीर बनाते हैं — जहाँ परंपरा, सादगी और अपनापन एक साथ झलकते हैं।

वास्तव में, राजियासर का यह नज़ारा केवल दृश्य नहीं, बल्कि गाँव की आत्मा है — जो हर उस व्यक्ति को अपनी ओर खींच लेती है जिसने कभी इस मिट्टी में कदम रखा हो।

Wednesday, January 23, 2013

ग्राम पंचायत राजियासर



ग्राम पंचायत राजियासर : गाँव की प्रशासनिक धड़कन

यह है राजियासर गाँव की ग्राम पंचायत, जो पूरे गाँव के मध्य भाग (गुवाड़) में स्थित है। इसका स्थान ऐसा है कि गाँव के सभी दिशाओं से लोग आसानी से यहाँ पहुँच सकते हैं। पंचायत भवन गाँव के विकास, निर्णय और जनकल्याण के कार्यों का केंद्र माना जाता है। यहाँ से न केवल प्रशासनिक कार्य संपन्न होते हैं, बल्कि यह गाँव के लोगों के मिलन, संवाद और सामूहिक निर्णयों का भी मुख्य स्थान है।

ग्राम पंचायत राजियासर के अंतर्गत कुल चार गाँव सम्मिलित हैं —
1️⃣ राजियासर मीठा
2️⃣ राजियासर खारा
3️⃣ राजियासर चक
4️⃣ ढाणी रणवा

इन चारों गाँवों का संचालन और विकास संबंधी कार्य इसी पंचायत के माध्यम से संचालित होते हैं। यहाँ नियमित रूप से बैठकों का आयोजन किया जाता है, जिसमें गाँव की समस्याओं पर चर्चा होती है और समाधान निकाले जाते हैं।

वास्तव में, यह ग्राम पंचायत केवल एक कार्यालय नहीं, बल्कि गाँव की एकता, सहयोग और विकास की पहचान है।

भारत निर्माण राजीव गाँधी सेवा केंद्र भवन



भारत निर्माण राजीव गांधी सेवा केंद्र भवन : आधुनिकता की ओर बढ़ता कदम

राजियासर गाँव का नव-निर्मित भारत निर्माण राजीव गांधी सेवा केंद्र भवन गाँव के विकास और प्रगति की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। यह भवन राजियासर मीठा, पंचायत समिति सुजानगढ़ के अंतर्गत स्थित है और गाँव के मध्य भाग में बना हुआ है, जिससे सभी ग्रामीणों के लिए यहाँ पहुँचना सुविधाजनक रहता है।

यह केंद्र भारत सरकार की ग्रामीण विकास योजना के तहत बनाया गया है, जिसका उद्देश्य गाँवों में डिजिटल सेवाएँ, सरकारी योजनाओं की जानकारी, दस्तावेज़ संबंधी कार्य और अन्य जनसेवाएँ एक ही स्थान पर उपलब्ध कराना है। यहाँ ग्रामीण लोग अपने आधार, जनआधार, सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ, पेंशन, मनरेगा और अन्य सरकारी सुविधाओं से संबंधित कार्य आसानी से करवा सकते हैं।

इस भवन का निर्माण न केवल गाँव की प्रशासनिक व्यवस्था को सशक्त बनाता है, बल्कि यह राजियासर गाँव के आधुनिक और आत्मनिर्भर बनने की दिशा में एक मजबूत कदम भी है। यह सेवा केंद्र गाँव के हर नागरिक को सुविधाओं के और करीब लाने का प्रतीक है।

Wednesday, January 2, 2013

गाँव का मध्य (गुवाड़)


गुवाड़ : गाँव का दिल और जीवन का केंद्र

यह स्थान गाँव के एकदम मध्य भाग में स्थित है, जिसे स्थानीय भाषा में प्रेमपूर्वक “गुवाड़” कहा जाता है। वास्तव में, गुवाड़ को गाँव का दिल कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी — क्योंकि यही वह जगह है जहाँ से पूरे गाँव की गतिविधियाँ संचालित होती हैं।

गाँव के बीचोंबीच होने के कारण लगभग सारी आवश्यक सुविधाएँ यहीं पर उपलब्ध हैं। गुवाड़ में दुकानें, उपस्वास्थ्य केंद्र, आंगनवाड़ी, आटा-चक्की, दर्जी की दुकान, ग्राम पंचायत भवन, आईटी सेवा केंद्र और बस स्टैंड जैसी सुविधाएँ मौजूद हैं। यह स्थान गाँव के लोगों के मिलने-जुलने, बातचीत करने और रोज़मर्रा के कामों का मुख्य केंद्र है।

यही नहीं, गुवाड़ से आसपास के कई गाँवों के लिए रास्ते भी निकलते हैं — जैसे मालासी, मैणासर, रूखासर, बुधवाली, कनवारी, ढाकावाली, पड़िहारा, हरासर, डूंगरास और भानिसरिया आदि। इस कारण यह स्थान न केवल राजियासर गाँव बल्कि आसपास के ग्रामीण इलाक़ों के लिए भी संपर्क और सुविधा का प्रमुख केंद्र बन गया है।

वास्तव में, गुवाड़ गाँव की आत्मा है — जहाँ परंपरा, सुविधा और अपनापन तीनों एक साथ जीवंत रूप में दिखाई देते हैं।

Tuesday, December 25, 2012

गाँव का कुँवा


राजियासर का ऐतिहासिक कुँवा : गाँव की अमूल्य धरोहर

राजियासर गाँव का यह कुँवा बहुत पुराना और ऐतिहासिक है। बताया जाता है कि इसका निर्माण करीब दो सौ साल पहले एक बनिए (व्यापारी) द्वारा करवाया गया था। समय चाहे जितना बदल गया हो, लेकिन यह कुँवा आज भी मजबूती से खड़ा है और गाँव की पहचान बना हुआ है।

इतना पुराना होने के बावजूद, आज भी इसकी मोटर ठीक तरह से काम करती है, जो अपने आप में एक आश्चर्य की बात है। यह कुँवा सिर्फ राजियासर ही नहीं, बल्कि आसपास के तीन गाँवों को भी पानी उपलब्ध कराता है। हालांकि इसका पानी थोड़ा नमकीन है, फिर भी लोग इसे आदर और गर्व से देखते हैं — क्योंकि यह गाँव के इतिहास और मेहनत की निशानी है।

आज के समय में ऐसे कुँवे बहुत कम देखने को मिलते हैं। राजियासर का यह कुँवा सचमुच एक धरोहर है — जो पीढ़ियों से गाँव की प्यास बुझा रहा है और अब भी उतनी ही शांति से अपनी सेवा दे रहा है।

इस कुँए की एक और खासियत यह है कि कभी भी किसी ने इसमें आत्महत्या करने की कोशिश नहीं की, और न ही इससे जुड़ी कोई दुर्घटना हुई है। यही बात इसे और भी पवित्र, सुरक्षित और शुभ प्रतीक बनाती है।

वास्तव में, यह कुँवा केवल पानी का स्रोत नहीं, बल्कि गाँव के विश्वास, इतिहास और सकारात्मकता का प्रतीक है।

Monday, December 24, 2012

गाँव के मंदिर


गाँव के मंदिर : श्रद्धा और परंपरा का संगम

गाँव में कई प्राचीन और पूजनीय मंदिर हैं, जो यहाँ की आस्था और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक हैं। इनमें सबसे प्रमुख है श्री हनुमान (बालाजी) मंदिर, जिसका निर्माण करीब 200 वर्ष पहले करवाया गया था। समय के साथ यह मंदिर गाँव के लोगों की श्रद्धा का केंद्र बन गया। पहले इस मंदिर में केवल सफेदी और हल्की मरम्मत का काम ही होता था, लेकिन अब पुराने मंदिर को तोड़कर नया भव्य बालाजी मंदिर बनाया गया है, जिससे यह स्थल और भी सुंदर व आकर्षक दिखाई देता है। इस मंदिर के पुजारी श्री अमर दास स्वामी जी हैं, जो पूरे श्रद्धा भाव से पूजा-अर्चना करवाते हैं।

दूसरा प्रमुख मंदिर शिव मंदिर है, जिसका निर्माण लगभग 50–60 वर्ष पहले हुआ था। हर वर्ष महाशिवरात्रि के अवसर पर यहाँ भव्य आयोजन किया जाता है, जिसमें गाँव और आस-पास के कई लोग शामिल होते हैं। इस दिन मंदिर परिसर में भक्ति, संगीत और रौनक का सुंदर माहौल देखने को मिलता है।

इन दोनों मंदिरों की उपस्थिति से गाँव का वातावरण आध्यात्मिकता और शांति से भरा रहता है — जहाँ हर सुबह आरती की ध्वनि और श्रद्धा की भावना पूरे राजियासर में गूँजती है।

Sunday, December 23, 2012

स्व.ठा.श्री किशन सिंह राठौड़ की हवेली


राजियासर गाँव की पुरानी हवेली

राजियासर गाँव की यह हवेली भी अपने आप में ऐतिहासिक महत्व रखती है। यद्यपि यह 200 वर्ष पुरानी तो नहीं कही जा सकती, परंतु लगभग 150 वर्ष से अधिक पुरानी अवश्य है। इस भव्य हवेली का निर्माण स्व. ठा. श्री किशन सिंह राठौड़ (पुत्र स्व. ठा. श्री बिन्जराज सिंह राठौड़) ने करवाया था।

यह हवेली गाँव के उत्तरी छोर पर, उतरादाबास में स्थित है। समय के साथ यह हवेली गाँव की वास्तुकला और इतिहास का प्रतीक बन गई है। आज भी इसमें कुछ परिवारों का निवास है, जो इसकी विरासत को जीवित रखे हुए हैं।

हालाँकि अब यह हवेली जर्जर होने लगी है — विशेषकर पीछे की ओर की दीवारों की ईंटें टूटने लगी हैं, और संरचना धीरे-धीरे ढहने की कगार पर पहुँच रही है।

यह हवेली राजियासर गाँव के गौरव और इतिहास की एक अमूल्य निशानी है, जिसे संरक्षण की आवश्यकता है ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इस सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ सकें।